संत चंद्रप्रभ सागर ने कहा कि प्रभु ने हमें दुर्लभ मानव जीवन दिया है। इसके लिए सुबह उठने के बाद और रात में सोने से पहले उसका शुक्रिया अदा करना न भूलें। वे रविवार को संबोधि धाम में साधकों को जीवन जीने की कला सिखा रहे थे। उन्होंने कहा कि जीवन प्रभु का प्रसाद है। जिन्हें जीने की कला आती है, उनका जीवन बांस नहीं संगीत पैदा करने वाली बांसुरी बन जाता है। हम रोकर जीते हैं या हंसकर... यह हमारे ऊपर निर्भर है।
उन्होंने कहा कि जो लोग प्यार से जीते हैं उन्हें जीते जी याद किया जाता है और मरने के बाद भी। जो लड़-लड़ कर जीते हैं वे जीते जी खटकते हैं। ऐसे लोग मरने के बाद जल्दी भुला दिए जाते हैं। जीवन को आनंदपूर्ण तरीके से जीने के लिए जरूरी है कि हम तकरार हटाएं और प्यार बढ़ाएं। उन्होंने कहा कि स्वर्ग आसमान में या नर्क पाताल में नहीं बल्कि हमारी हथेली में ही है। अगर हम अतीत को देखते रहेंगे तो नर्क की आग में झुलसते रहेंगे। हमें अतीत की यादों में खोए रहने की बजाय भविष्य के ऊंचे और अच्छे सपने देखने चाहिए और वर्तमान को उसके लिए समर्पित करना चाहिए। सिकंदर बनकर पूरी दुनिया को जीतना सरल है पर महावीर बनकर अपने क्रोध और कषाय को जीतना सबसे बड़ी विजय है। संत ने कहा कि अगर हम अपने माइंड को कंट्रोल में करना चाहते हैं तो रोज 20 मिनट मेडिटेशन अवश्य करें। इस दौरान संत ने तीसरे नेत्र को जागृत करने के लिए सरल ध्यान का प्रयोग करवाया। इससे पूर्व मुनि शांतिप्रिय सागर ने आरोग्य और मस्तिष्क की सुप्त शक्तियों को जागृत करने के लिए पॉवर योग और प्राणायाम करवाए। संयोजक उम्मेदसिंह भंसाली ने आभार जताया। सह कोषाध्यक्ष देवेंद्र गेलड़ा ने अतिथियों का स्वागत किया।
श्रावक ताराचंद की स्मृति में हुए धार्मिक अनुष्ठान
श्रावक ताराचंद विनायकिया की स्मृति में रविवार को कई धार्मिक अनुष्ठान हुए। चिंतामणि पार्श्व मंडल के सह प्रसारक आलोक पारख ने बताया कि इस मौके पर परमात्मा स्नात्र पूजन, सामायिक आराधना, नवकार जाप, जीव दया अादि कार्यक्रम हुए। तपागच्छ संघ के सचिव उम्मेदराज रांका, जैन गौरव महासमिति के जिला महासचिव धनराज विनायकिया, अनिल मेहता, महावीर जैन, प्रेमसागर, पीयूष, सुमित्रा देवी, अनीश, मोनिका सौम्या आदि मौजूद थे।
जीवन प्रभु का प्रसाद, इसमें आनंद के लिए तकरार हटाएं और प्यार बढ़ाएं : संत चंद्रप्रभ